AMAN AJ

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आई नोट , भाग 10

अध्याय-2

    लक्ष्य और मकसद 
    भाग-3
    
    ★★★
    
    लग्जरी कार एक गेस्ट हॉउस के सामने आकर रुक गई। गेस्ट हॉउस की लाइटें जल रही थी। रात के अंधेरे में लाइटों से जगमगा रहे गेस्ट हॉउस की सुंदरता देखते ही बनती थी। ज्यादातर गेस्ट हॉउस में कांँच की कारागिरी दिखाई दे रही थी तो लाइटों की वजह से उसकी चमक गेस्ट हॉउस की सुन्दरता को दुगूना ही कर रही थी।
    
    आशीष कार से उतरा और उसने बैग को अपने हाथ में पकड़ लिया। इसके बाद उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और श्रेया की कार से उतरने में मदद की। कार से उतरने के बाद ड्राइवर कार को पॉर्किंग एरिया की तरफ ले गया। आशीष और श्रेया दोनों ही एक छोटी टाइलों की बनी पगडंँडी पर चलते हुए गेस्ट हॉउस के मुख्य दरवाजे की ओर जाने लगे।
    
    इस दौरान आशीष ने श्रेया का हाथ पकड़ रखा था। उसने गेस्ट हॉउस की तरफ जाते हुए दिलचस्प चाल का परिचय दिया और मन में कहा “लक्ष्य और मकसद, क्या एक इन्सान सच में इसके लिए कुछ भी कर सकता है? मैं अपनी मन्जिल के करीब हूंँ मगर फिर भी यह सवाल कर रहा हूंँ, शायद इसलिए क्योंकि लक्ष्य और मकसद की परिभाषा को कभी भी परिभाषित नहीं किया जा सकता। लक्ष्य और मकसद की परिभाषा इन्सान और इन्सान की सोच के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है। श्रेया के मरने वाले पति के लिए उसका लक्ष्य और मकसद शायद उसकी पत्नी के अलावा कुछ और नहीं होगा। वो अपनी पत्नी से प्रेम करता था और उसे कभी छोड़ना नहीं चाहता था, ऐसे मैं यही सम्भावना थी कि यही उसका लक्ष्य और मकसद था और अगर मेरे नजरिए से देखा जाए तो मेरा उसकी पत्नी पर दिल आ गया था। मैं श्रेया को हर हाल में पाना चाहता था। यहांँ मेरा लक्ष्य और मकसद श्रेया बनी। दो लोगों के लक्ष्य और मकसद अगर एक ही हो जाए तो उनमें से किसी एक को पीछे हटना पड़ता है और अगर वह पीछे नहीं हटता तो पीछे हटाने के रास्ते ढूंँढने पड़ते हैं, फिर अगर मुसीबत को हमेशा के लिए रास्ते से हटाना हो तो कुछ ऐसा करना पड़ता है जिसके बाद मुसीबत दोबारा कभी सामने ही ना आए।”
    
    दोनों ही गेस्ट हॉउस के मुख्य दरवाजे तक पहुंँच गए। आशीष ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला और श्रेया को अन्दर जाने की और इशारा किया। श्रेया के अन्दर जाने के बाद आशीष अन्दर आया और उसने गेस्ट हॉउस का दरवाजा बन्द कर दिया।
    
    श्रेया आगे चल रही थी और आशीष उसके पीछे पीछे। आशीष ने उसके पीछे चलते हुए अपने मन की बात को दोबारा आगे जारी रखते हुए कहा “दोबारा सामने से ना आने का मेरा मतलब, वही करना जो मैंने श्रेया के पति के साथ किया है। समाज इस बात को स्वीकार नहीं करता, उसके लिए यह अपराध है और इसीलिए मैंने अपनी पहचान और अपने रूप को छुपाया। मैंने कहा था इन्सान को अपनी पहचान तब छुपानी पड़ती है जब उसे कुछ ऐसा करना होता है, जो समाज के लिए सही नहीं। समाज उसे स्वीकार नहीं करता। अब वैचारिक मतभेद हर जगह हो सकते हैं। विचारों की यह लड़ाई तो इन्सानी दुनिया के शुरुआत से ही चली आ रही है। एक इन्सान की सोच और समाज की सोच, दोनों में हमेशा मतभेद ही रहा है। फिर कौन सही है कौन गलत है, तो दोनों अपने लिए सही है, जबकि एक दूसरे के लिए गलत।”
    
    दोनों ही हॉल में आ पहुंँचे थे। हॉल में आते ही आशीष ने श्रेया के बैग को वहांँ मौजूद कांँच की टेबल पर रख दिया। इसके बाद घर श्रेया से बोला “ऊपर बाथरूम है, तुम वहांँ जाकर फ्रेश हो जाओ, मैं तब तक खाने-पीने का इन्तजाम करता हूंँ।”
    
    श्रेया ने इसे लेकर हामी भरी। आशीष ने इसे स्वीकार किया और श्रेया को वहीं छोड़कर किचन की तरफ चल पड़ा। आशीष के गेस्ट हॉउस का किचन भी गेस्ट हॉउस की तरह ही शानदार था। मानो किसी फाइव स्टॉर होटल का शानदार किचन हो।
    
    किचन में पहुंँचते ही उसने फ्रिज खोला और उसमें से एक दर्जन अण्डे बाहर निकाल लिए। अण्डों को बाहर निकालने के बाद उसने कांँच का बॉयल लिया और अंडों को एक-एक कर उसमें तोड़ने लगा।
    
    अण्डों को एक-एक कर उसमें तोड़ते हुए उसने अपने मन में कहा “देखा जाए तो इस समाज पर भी एक बहुत बड़ा निम्बन्ध लिखा जा सकता है। समाज अक्सर एक सीधे साधे इन्सान के सामने कई सारी परेशानियांँ खड़ा करता है, सिर्फ परेशानियांँ खड़ा नहीं करता बल्कि खुद भी कई सारी परेशानियों की वजह बन जाता है। अब अगर किसी लड़के को भाग कर किसी लड़की से शादी करनी है, या किसी लड़की को भागकर किसी लड़के से शादी करनी है, तो सबसे पहले रास्ते में समाज ही रुकावट बन कर खड़ा होता है। इनकम और कानून तो बहुत बाद में आगे आते हैं। अगर इस बारे में गहराई से सोचा जाए तो ज्यादातर अपराध की वजह यह समाज ही बनता है। हम एक लड़के और लड़की को भागना अगर अपराध समझे तो इस अपराध का जिम्मेदार कौन है? समाज? शायद हांँ? समाज लड़का और लड़की के रिश्ते को अपना ले तो अपराध करने की जरूरत ही क्या?”
    
    उसने सभी अण्डे तोड़ कर बॉउल में डाल दिए थे। इसके बाद उसने फ्राइपीन लिया और उसमें तेल डालकर उसे गैस पर चढ़ा दिया। उसे गैस पर चढ़ाने के बाद उसने बॉउल में डाले गए अण्डों में नमक मिर्च और मसाले डाल दिए। फिर एक बड़ा चम्मच लिया और उसे मिलाने लगा।
    
    अण्डों में नमक मिर्च और मसाला मिलाते हुए उसने अपने मन में कहा “शायद मेरी बातों से समाज कभी भी सहमत ना हो। वजह समाज और एक इन्सान की सोच में हमेशा वैचारिक मतभेद रहता है। इसलिए अगर हम समाज और इन्सान को लेकर किसी तरह की बहस करने पर आए तो इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकलता। अगर निष्कर्ष को जबरदस्ती करके निकाला जाए तो यही सामने आता है कि दोनों अपनी जगह पर सही थे मगर एक दूसरे के लिए गलत। कभी दो इन्सानों की लड़ाई देखी है? ऐसे दो इन्सानों की लड़ाई जिनके पास अपने सशक्त और मजबूत विचार हो? मैं मारा पीट वाली लड़ाई की बात नहीं कर रहा। मैं बहशबाजी और विचारों की लड़ाई की बात कर रहा हूंँ। उसमें एक इन्सान सामने वाले इन्सान के सामने विचार रखता है, फिर सामने वाला इन्सान उसके विचार को काटता है और अपना विचार रखता है। इस तरह से विचारों की लड़ाई चलती है और आखिर में जो नतीजा आता है, यही रहता है कि दोनों अपनी जगह पर सही है, जबकि एक दूसरे के लिए गलत।”
    
    जब मसाले और नमक मिर्च पुरी तरह से मिल गए तब उसने बॉउल में मौजूद अण्डों को फ्राइविन के ऊपर डाल दिया। वो आमलेट बना रहा था। उसने गैस की आंँच को धीमा किया और अपने दोनों शेल्फ पर रख कर खड़ा हो गया।
    
    खड़े होने के बाद उसने सामने की तरफ देखा और अपने मन में कहा “यहांँ हम अगर पूरे समाज को कसूरवार ना ठहराएँ और इस सिद्धांत का पालन करें कि हो सकता है समाज सही हो, मगर वह मेरे लिए बुरा है। यानी एक तरह से आत्मदर्शी परिस्थिति को पैदा कर दे तो? यह एक गहरी बात है और इसे समझना आसान नहीं रहने वाला। इस विचार से हम एक इन्सान को एक ही समय पर बुरा और अच्छा दोनों ही बना सकते हैं। ‌ समाज, समाज शायद इसी सोच की वजह से एक ही समय पर अच्छा और बुरा दोनों बन जाता है। वह किसी इन्सान को लक्ष्य और मकसद हासिल करने से रोकता भी है और उसे हासिल करने में उसकी मदद भी करता है। बस परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि कब समाज हमारा दुश्मन बन रहा है और कब हमारा मददगार। फिर लक्ष्य और मकसद, उसे तो हासिल कर ही लिया जाता है।”
    
    तभी उसने फ्राइपीन की तरफ देखा। आमलेट बन कर तैयार हो चुका था। उसने गैस बन्द कीया और एक बड़ी ट्रे को उठा लिया। ट्रे को उठा लेने के बाद उसने आमलेट को उसमें रखा और उस पर कटे हुए बारीक प्याज और मिर्च डालकर उसे डेकोरेट कर दिया। इसके बाद वह वापिस फ्रिज की तरफ गया और वहांँ से शैंपिगं की बोतल निकाल ली। इसके साथ ही उसने कांँच के दो गिलास उठाएंँ और सभी के साथ हॉल की ओर जाने लगा।
    
    हॉल की ओर जाते हुए वह बोला “हो सकता है मेरे मानसिक विचार कुछ लोगों के समझ में ना आए, या कुछ लोग इसे बोरिंग समझे, मगर मानसिक विचारों के मतलब को समझा जाए तो काफी सारे मायने निकल कर बाहर आते हैं। मानसिक विचार, मानसिक विचार एकमात्र ऐसा साधन है जिससे किसी इन्सान की छवि को निर्धारित किया जा सकता है। हम यह जान सकते हैं कि हमारे सामने जो इन्सान मौजूद है उसका असल में व्यवहार कैसा है। वह अच्छा है या बुरा.... इसका पता सिर्फ और सिर्फ तभी लग सकता है जब हमें पता हो उसके दिमाग में क्या चल रहा है। सब... सब विचारों का ही तो खेल है। लक्ष्य और मकसद... इसे हासिल करने के पीछे भी तो विचार ही तो अपना योगदान देते हैं।”
    
    वह हॉल में पहुंँचा तो उसकी नजर सिढीयों पर गई। वहांँ श्रेया नहाने के बाद सफेद रंग के टॉवल में लिपटकर नीचे की तरफ आ रही थी। वह अट्रैक्टिव लग रही थी और ऐसी थी कि उसे देखते रहने वाला इन्सान बस उसे देखता ही रह जाए।
    
    आशीष ने खुद को उसकी सुन्दरता में डुबोते हुए अपने मन में कहा “अगर ऐसी लड़की किसी इन्सान का लक्ष्य और मकसद हो, तो कोई भी इसे पाने के लिए कुछ भी कर सकता है। सी इज... सी इज गॉर्जियस।”
    
    श्रेया नीचे आई और अपने बालों को झाड़ते हुए आशीष के हाथ में बने आमलेट को देखा “वाह क्या बात है, दिखने में तो यह इंटरेस्टिंग लग रहा है।” यह कहते हुए वह सोफे पर बैठ गई। 
    
    आशीष ने आमलेट और शैपियन की बोतल को कांँच के टेबल पर रखा और खुद भी वहांँ सोफे पर बैठ गया। सोफे पर बैठते हुए उसने कहा “मैंने बनाया है, इंटरेस्टिंग तो लगेगा ही, तुम नहीं जानती सिर्फ इतने से काम के लिए मुझे क्या-क्या नहीं करना पड़ा।”
    
    श्रेया ने एक मुस्कुराहट दिखाई “आमलेट बनाना इतना मुश्किल भी तो नहीं।”
    
    आशीष ने यह सुना तो अपने मन में कहा “आमलेट बनाना तो इतना मुश्किल नहीं, मगर इसे जिसे खिलाना है उसे यहांँ तक लाना तो मुश्किल है ना। इसके लिए बेवजह किसी के पति की भी जान लेनी पड़ती है।”
    
    आशीष ने यह कहकर एक मुस्कुराहट दिखाई, एक ऐसी मुस्कुराहट जो उसके ठण्डे व्यवहार को दिखा रही थी, मगर यह बात छुपाए नहीं छुपाई जा सकती थी, की अपने इस ठण्डे व्यवहार के बावजूद वो वैसा नहीं जैसा दिखाई दे रहा है। वो ज्यादा खतरनाक हैं। इतना ज्यादा खतरनाक की एक लड़की को पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। 
    
    ★★★


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4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

05-Dec-2021 02:06 AM

बहुत ही रोमांचक, रोचक.. बहुत ही खूबसूरत

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Sana Khan

03-Dec-2021 07:24 PM

Good

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Arman Ansari

02-Dec-2021 05:23 PM

Bahetin lekhan

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